अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने Truth Social पेज पर 1 अक्टूबर 2025 से शुरू होने वाले 100% टैरिफ की घोषणा की, जो सभी ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं पर लागू होगा, जब तक कंपनी अमेरिका में उत्पादन सुविधा नहीं स्थापित करती। इस अचानक नीति परिवर्तन ने भारतीय फ़ार्मास्युटिकल सेक्टर को झटका पहुंचाया, जिससे शेयर बाजार में तेज़ गिरावट देखी गई।
ट्रम्प की टैरिफ नीति की घोषणा
ट्रम्प ने स्पष्ट शब्दों में लिखा: "यदि कंपनी ने अमेरिका में फ़ार्मा प्लांट बनाना शुरू कर दिया है, तो टैरिफ नहीं लगेगा; अन्यथा 100% टैरिफ लागू होगा।" यह घोषणा विशेष रूप से उन कंपनियों को लक्षित करती है जो यू.एस. में ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं का निर्यात करती हैं, जो भारतीय दवा एक्सपोर्ट का लगभग 30% हिस्सा बनाती हैं। नीति के तहत जटिल जेनरिक, बायोसिमिलर या विशेष बायोलॉजिक को कैसे वर्गीकृत किया जाएगा, इस पर स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं, जिससे बाजार में अज्ञात जोखिम बढ़ गया।

भारतीय फ़ार्मा कंपनियों पर प्रभाव
इस खबर के बाद, Indian pharma stocks ने भारी बेचाव देखा। सून फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज ने 52‑हफ्ते का न्यूनतम स्तर पर गिरते हुए 1,547 रुपये पर कारोबार किया, जो पिछले क्लोज़ से 5% की गिरावट थी। शुरुआती ट्रेड में शेयर 1,585 रुपये पर खुले और फिर 1,548 रुपये को छू गया, जबकि दिन के अंत में 2% से अधिक के नुकसान के साथ 1,586.55 रुपये पर बंद हुए।
बायोकॉन ने 3.3% की गिरावट के साथ 344 रुपये पर व्यापार किया, ज़ाइडस लाइफ़साइंसेस 2.8% घटकर 990 रुपये पर पहुंचा। औरेडोबिंदो फार्मा 2.4% गिरकर 1,070 रुपये पर, डॉ. रेड्डी’स लैबोरेटरीज 2.3% गिरकर 1,245.30 रुपये पर बंद हुए। लुपिन और सिप्ला दोनों ने 2% की समान गिरावट दर्ज की, जबकि टॉरंट फार्मा तुलनात्मक रूप से कम प्रभावित रहा, 1.5% गिरकर 3,480.65 रुपये पर बंद हुआ।
निफ़्टी फ़ार्मा इंडेक्स ने पूरे सत्र में 2.5% से अधिक की गिरावट दर्ज की। ओपनिंग समय पर 2.54% नीचे था, और 10 मिनट में फिर 2.38% गिरावट के साथ नीचे आ गया। सभी 20 इंडेक्स घटकों ने नुकसान देखा, जिससे कुल मिलाकर लगभग 2.6% की गिरावट आई। इस गिरावट का असर निफ़्टी 50 इंडेक्स तक पहुंचा, जो 0.4% गिरकर 24,800 स्तर पर बंद हुआ।
व्यक्तिगत शेयरों में नैटको फ़ार्मा, लॉरस लैब्स और एबॉट इंडिया ने 3% से अधिक की गिरावट के साथ शीर्ष हानीकारियों में स्थान प्राप्त किया। विश्लेषकों ने बताया कि अमेरिकी बाजार पर बड़ी हिस्सेदारी वाले दिग्गज, जैसे डॉ. रेड्डी’स और सून फार्मा, विशेष जोखिम का सामना कर रहे हैं, क्योंकि उनका अधिकांश राजस्व ब्रांडेड और स्पेशल्टी दवाओं से आता है।
एक बाजार विशेषज्ञ ने कहा, "यदि कंपनियां जल्द ही अमेरिकी उत्पादन इकाइयों की योजना नहीं बनातीं, तो निवेशकों को 20‑30% तक की बड़ी गिरावट का सामना करना पड़ सकता है।" तकनीकी विश्लेषकों ने चार्ट पैटर्न को देखते हुए संभावित आगे की गिरावट को दर्शाया, जिसमें सपोर्ट लेवल टूटने की स्थिति में तेज़ी से नीचे की ओर प्रवृत्ति देखी जा सकती है।
उपरोक्त घटनाओं से यह स्पष्ट है कि अमेरिकी टैरिफ नीति न केवल भारतीय फ़ार्मा कंपनियों की निर्यात रणनीतियों को बदल देगी, बल्कि विदेश में उत्पादन निवेश को भी तेज़ कर सकती है। कई कंपनियां इस दिशा में पहले से ही पूंजी निवेश की योजना बना रही थीं, लेकिन अब ये योजना तेज़ हो सकती है, जिससे दीर्घकालिक संरचनात्मक बदलाव की संभावना बढ़ रही है।
साथ ही, इस नीति के कारण संवाददाता और व्यापार संघों ने अमेरिकी नियामक संस्थानों से स्पष्टता की मांग की है, ताकि जेनरिक, बायोसिमिलर और बायोलॉजिक प्रॉडक्ट्स की वर्गीकरण में अस्पष्टता दूर हो सके। बिना स्पष्ट दिशा-निर्देशों के बाजार में अनिश्चितता बनी रहेगी और निवेशकों को सतर्क रहने की जरूरत होगी।