When working with छठ पूजा, सूर्य को सम्मानित करने और शुद्धि की भावना से भरपूर एक प्रमुख हिन्दू तिहार. Also known as सूर्य उपासना, it brings together families across बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड की उमंग। यह तिहार आध्यात्मिक शक्ति, स्वास्थ्य लाभ और सामाजिक एकता को जोड़ता है, इसलिए हर वर्ष लाखों लोग इसका इंतज़ार करते हैं।
छठ पूजा सूर्य के प्रति श्रद्धा को दर्शाती है, और सूर्य को अर्घ्य देना त्यौहार का मुख्य भाग है। सूर्य, आकाश में दिये गए विश्वरूप के मध्य में स्थित प्रकाश स्रोत को अर्घ्य देने से स्वास्थ्य, ऊर्जा और मन की शांति में वृद्धि होती है। यही कारण है कि लोग सुबह‑सुबह किनारे या तालाब के पास खड़े होकर सूर्य अर्घ्य करते हैं; यह रीति‑रिवाज गंगा, कावेरी, या किसी भी पवित्र जल स्रोत में ही किया जाता है।
इस त्यौहार की प्रक्रिया बिना किसी व्रत, एक निर्धारित समय में भोजन व पानी से परहेज करने वाली शारीरिक एवं आध्यात्मिक प्रथा के पूरी नहीं होती। व्रत रखने वाले संकल्पित होते हैं कि वे दो दिन तक जल, अन्न, और शारीरिक सुखों से दूर रहें, जिससे शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं। व्रत के बाद शाम को दुध‑भात, खीर, चनादि जैसे प्रसाद तैयार होते हैं, जो फिर अर्घ्य से बाद में खाने के लिये परोसते हैं। इस परिपक्व चरण में छठ पूजा के सभी प्रमुख तत्व आपस में जुड़ते हैं: सूर्य अर्घ्य, व्रति, और पारिवारिक एकता।
छठ पूजा का इतिहास मिथिला के प्राचीन ग्रंथों में मिलता है, जहाँ कहा गया है कि राजा हिरण्यवर्म ने इस तिहार की शुरुआत की थी। इस कथा के अनुसार, सूर्य को धन्यवाद देने के लिये दिये गये अर्घ्य ने राजकुमार को गंभीर बीमारी से बचाया। तभी से यह परम्परा चलती आई। अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में सुबह‑सुबह उषः अर्घ्य और शाम‑समय अस्त अर्घ्य दो बार किया जाता है, जिससे सूर्य के दो मुख्य संक्रमण (उदय और अस्त) का सम्मान होता है।
छठ पूजा में अर्घ्य, सूर्य को जल, दूद, घी, पवन दत्त आदि अर्पित करने की विधि केवल एक रस्म नहीं है; इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखे तो यह सूर्य के विकिरण को कम करने, जलवायु तनाव को घटाने और शरीर के मेटाबोलिज़्म को संतुलित करने में मदद करता है। कई बार व्रति रखने वाले लोग बताते हैं कि अर्घ्य के बाद उन्हें छोटी मोटी बीमारियों में आराम महसूस होता है, इसलिए यह प्रक्रिया स्वास्थ्य विज्ञान के साथ भी संलग्न है।
छठ के दौरान कई विशेष गीत, जैसे "कजरी", "भोर बिहाने", और "दूधिया दही" गाए जाते हैं। ये गाने न केवल माहोल को उत्सवपूर्वक बनाते हैं, बल्कि आध्यात्मिक वातावरण को भी सशक्त करते हैं। युवा वर्ग इन गीतों को सोशल मीडिया पर भी शेयर करता है, जिससे तिहार का राष्ट्रीय स्तर पर प्रसार होता है। इस प्रकार छठ पूजा ने प्राचीन परम्पराओं को आधुनिक तकनीक के साथ मिलाते हुए एक नया रूप लिया है।
जब आप आज़ाद बिहार या झारखंड के किनारे इस पवित्र अर्घ्य दृश्य को देखते हैं, तो आप महसूस करेंगे कि यह सिर्फ एक धर्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक बंधन भी है। लोग एकत्रित होकर एक ही लक्ष्य के लिये जुटते हैं—सूर्य के प्रकाश में अपने जीवन को उज्जवल बनाना। यही कारण है कि इस त्यौहार को "वेलनेस फेस्टिवल" भी कहा जाता है।
हमें आशा है कि इस परिचय से आप छठ पूजा के महत्व, प्रमुख रिवाज़, और इससे जुड़ी कथाओं को बेहतर समझ पाएँगे। नीचे आप विभिन्न समाचार, रोचक तथ्यों और उपयोगी टिप्स वाले लेख पाएँगे—जिनमें से प्रत्येक ने इस पावन तिहार के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया है। आगे पढ़ते रहें और खुद को छठ के मौसम की तैयारियों में मदद करें।
छठ पूजा 2025 25‑28 अक्टूबर को बिहार, झारखंड, यूपी, मध्य प्रदेश और नेपाल में मनाई जाएगी। मुख्य तिथियां, समय और रीतियों की पूरी जानकारी।