छठ पूजा 2025: बिहार‑नेपाल में 25‑28 अक्टूबर के प्रमुख तिथियां और समय

छठ पूजा 2025: बिहार‑नेपाल में 25‑28 अक्टूबर के प्रमुख तिथियां और समय
Shubhi Bajoria 30 सितंबर 2025 12 टिप्पणि

जब सूर्य देव, छठु और छठी माँ का सम्मान छठ पूजा 2025 में किया जाता है, तो बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और नेपाल के लाखों भक्तों की धड़कनें एकसाथ धड़कती हैं। इस चार‑दिन के पावन फोर्क को 25 अक्टूबर (शनिवार) से 28 अक्टूबर (मंगलवार) तक मनाया जाएगा, और समय‑सारिणी की कड़ाई से पालन ही पूजा का मूल मंत्र है।

इतिहास और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि

छठ पूजा का मूल वैदिक ग्रंथों में मिलता है, जहाँ सूर्य की शक्ति को जीवन-धारा कहा गया है। अक्सर इसे संस्कृति‑निर्माण का सबसे पुराना योग कहा जाता है, क्योंकि यह शारीरिक शुद्धि, आध्यात्मिक अनुशासन और पर्यावरणीय जागरूकता को एक साथ लाता है। कई शताब्दियों से यह बिहार के जल‑किनारे, विशेषकर गंगा, सांगर, कोसी और कावेरी के तटों पर धूमधाम से मनाई जाती है।

आजकल नेपाल के तराई में भी इस त्योहार का उत्सव समृद्ध रूप से देखा जाता है, जहाँ कर्णाली नदिया के किनारे बड़ी भीड़ जमा होती है।

2025 की मुख्य तिथियां और समय‑सारिणी

  • नहाय-खाय (सफ़ाई एवं भोजन): शनिवार, 25 अक्टूबर – सुबह 07:00 बजे (दिन के लिए) और शाम 18:00 बजे (रात के लिए) ।
  • खरना (लोहंडा): रविवार, 26 अक्टूबर – पूरे दिन उपवास और शाम 18:15 बजे संध्या अर्घ्य का प्रारम्भ।
  • संध्या अर्घ्य: सोमवार, 27 अक्टूबर – सूर्य के अस्त होने पर 05:40 PM पर गंगा किनारा पर अर्घ्य अर्पण।
  • उषा अर्घ्य (प्रभात अर्घ्य): मंगलवार, 28 अक्टूबर – सूर्य के उगते ही 06:30 AM पर उपवास का अंत और छठ पूजा तिथि 06:04 AM से 07:59 AM तक चलता है।

इन समय‑सीमाओं का पालन न करने पर माना जाता है कि इच्छा पूरी नहीं होती, इसलिए हर परिवार एक‑दूसरे को याद दिलाता रहता है।

रिवाज़ और अनुशासन

छठ पूजा के चार दिन में कई अनुष्ठान होते हैं:

  1. नहाय‑खाय: स्नान, शुद्ध भोजन, और परिवार के साथ मिलकर दही‑भात, टहटहा और ठन्डा जल पीना।
  2. खरना: दो‑तीन घंटे का निरंतर उपवास, सिर्फ़ फल और जल से पोषण। शाम को लोहंडा तैयार किया जाता है – यह गेहूँ‑आटा, गुड़, और घी का मीठा मिश्रण है।
  3. संध्या अर्घ्य: सूर्यास्त के समय नदी किनारे जाकर दो टोकरी में जल और बांस की थाली पर फल‑फूल अर्पित करना।
  4. उषा अर्घ्य: सूर्योदय के साथ फिर से वही अर्पण, फिर उपवास का परित्याग।

इनमें छठी माँ को भी विशेष प्रसाद जैसे ठेकुवा, गुड़ की खीर, नारियल और ताड़ के पत्ते अर्पित किए जाते हैं।

क्षेत्रीय विविधताएँ और भीड़

बिहार में पटना की गंगा घाट, हरिद्वार की कोसी किनारा, और रांची की झरनारा घाट पर लाखों की भीड़ इकट्ठा होती है। झारखंड में भी कोयलाबाग और दंतेवाड़ा के स्थल प्रमुख हैं। नेपाल में कत्री, बर्दिया और दाल्दुगा के तट विशेष रूप से चमकते हैं।

यहां तक कि दिल्ली के कुछ लोग भी गड़वा नदी के किनारे छोटे‑छोटे मंडलों में अभिवादन करते हैं, जिससे छठ की भावना राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचती है।

विशेषज्ञों की राय और सामाजिक प्रभाव

विशेषज्ञों की राय और सामाजिक प्रभाव

विज्ञान के क्षेत्र में पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. अजय वर्मा, जो भारतीय प्रचलित स्वास्थ्य विज्ञान संस्थान (AIIMS) के अतिथि प्रोफ़ेसर हैं, कहते हैं: “छठ पूजा में नदी किनारे किए जाने वाले स्नान, वायु‑शुद्धिकरण और जल‑संकट के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देता है। यदि सच्चे मन से किया जाए तो यह एक प्राकृतिक डिटॉक्सिफिकेशन के बराबर है।”

ऐतिहासिक रूप से यह त्यौहार किसानों की फसल‑कटाई के बाद सूर्य को धन्यवाद देने का माध्यम रहा है, इसलिए इसे ‘हंगामे‑उत्सव’ भी कहा जाता है। आज भी हर साल अनीक वाणिज्यिक संस्थाएँ इस अवसर पर “सूर्य ऊर्जा” और “पर्यावरण संरक्षण” के संदेश के साथ विज्ञापन चलाती हैं।

आगामी वर्ष और संभावित बदलाव

भविष्य में डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर लाइव‑स्ट्रीमिंग की बढ़ती लोकप्रियता के कारण कई गाँव और शहर अब अपने अर्घ्य समारोह को ऑनलाइन प्रसारित करेंगे। इस साल सरकार ने बिहार सरकार के सहयोग से “पाणि‑सुरक्षा और स्वच्छता” अभियान भी जोड़ा है, जिससे नदी‑किनारे की सफ़ाई को एक स्थायी प्रोजेक्ट बनाया जा सकेगा।

साथ ही, जल‑संक्रमण रोकने के लिए स्थानीय प्रशासन ने पटना के प्रमुख घाटों पर अवैध प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया है।

मुख्य तथ्य

  • छठ पूजा 2025: 25‑28 अक्टूबर
  • मुख्य अर्घ्य समय: 27 अक्टूबर शाम 05:40 PM, 28 अक्टूबर सुबह 06:30 AM
  • प्रमुख स्थल: बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, नेपाल
  • संध्या अर्घ्य की आरम्भिक तिथि: 27 अक्टूबर 2025
  • उषा अर्घ्य के साथ तिथि समाप्ति: 28 अक्टूबर 2025, 07:59 AM तक

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

छठ पूजा 2025 में कौन‑से प्रमुख दिन होते हैं?

छठ पूजा 2025 चार मुख्य दिन‑पहलू में बँटी है: नहाय‑खाय (25 अक्टूबर), खरना (26 अक्टूबर), संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर) और उषा अर्घ्य (28 अक्टूबर)। हर दिन के अनुष्ठान अलग‑अलग समय‑सीमा में होते हैं।

संध्या अर्घ्य का सटीक समय क्या है?

संध्या अर्घ्य 27 अक्टूबर 2025 को सूर्य के अस्त होने पर, स्थानीय समयानुसार 05:40 PM पर किया जाएगा। यह समय नदी‑किनारे के सभी प्रमुख घाटों पर एकसाथ पालन किया जाता है।

छठ पूजा में क्यों जल‑स्नान और प्राकृत भोजन अनिवार्य है?

जल‑स्नान शुद्धिकरण का प्रतीक है, जबकि प्राकृत भोजन (फल, पानी, गुड़) शरीर को ऊर्जा देता है और उपवास के दौरान पोषक तत्व प्रदान करता है। यह संयोजन वैदिक शारीरिक‑आध्यात्मिक संतुलन को दर्शाता है।

छठ पूजा का पर्यावरण पर क्या प्रभाव है?

छठ पूजा में नदी‑किनारे स्वच्छता के नियम कड़ाई से लागू होते हैं। हाल के वर्षों में प्लास्टिक‑मुक्त अर्घ्य और जल‑संसाधन संरक्षा अभियानों ने नदी की जल‑गुणवत्ता में सुधार लाया है।

चैती छठ पूजा कब मनाई जाती है?

चैती छठ, जिसे चैत छठा या दाला पूजा भी कहा जाता है, 2025 में 1 अप्रैल से 4 अप्रैल तक मनाई जाएगी। यह वसंत‑कटाई का प्रतीक है और मुख्य छठ पूजा से अलग लेकिन समान रीति‑रिवाज़ रखता है।

12 टिप्पणि
Himanshu Sanduja सितंबर 30 2025

छठ पूजा का समय पूरे बिहार में एकजुटता की भावना जगाता है। 25 से 28 अक्टूबर तक चार दिन बिताने वाले लोग इस अवसर को बड़े उत्साह से मनाते हैं। नहाय‑खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य प्रत्येक दिन की मुख्य रस्में होती हैं। विशेषकर संध्या अर्घ्य का टाइमिंग सूर्य के अस्त होने पर 05:40 PM बताया गया है, जो सभी को याद रखना चाहिए। नदी किनारे स्वच्छता का भी खास ध्यान रखा जाता है। इसलिए इस वर्ष भी प्लास्टिक मुक्त अर्घ्य को बढ़ावा दिया जा रहा है।

Kiran Singh सितंबर 30 2025

छठ पूजा का समय याद रखने में मदद मिलती है 😊

vikash kumar अक्तूबर 1 2025

2025 की छठ पूजा की तिथियों का विस्तृत विवरण इस लेख में स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया गया है, जो शास्त्रीय परिप्रेक्ष्य से मूल्यवान है। नहाय‑खाय से लेकर उषा अर्घ्य तक प्रत्येक चरण का समय-सारिणी सटीक रूप से उल्लेखित है। इस प्रकार की जानकारी न केवल भक्तों के लिए मार्गदर्शक है, बल्कि शोधकर्ताओं के लिए भी उपयोगी डेटा प्रदान करती है। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा नेपाल के विभिन्न घाटों पर समान रीति‑रिवाज़ का पालन किया जाता है। यह सांस्कृतिक समन्वय हमारी सामूहिक पहचान को सुदृढ़ करता है।

Swetha Brungi अक्तूबर 1 2025

छठ पूजा के चार दिन में शारीरिक शुद्धि और आध्यात्मिक अनुशासन का अनूठा संगम दिखता है। नहाय‑खाय के बाद खरना के दौरान केवल फल और पानी से पोषण किया जाता है, जिससे शरीर को प्राकृतिक डिटॉक्स मिलता है। संध्या अर्घ्य में सूर्यास्त के साथ बांस की थाली पर फल‑फूल अर्पित किए जाते हैं, जो प्रकृति के साथ हमारे संबंध को दर्शाता है। उषा अर्घ्य में सूर्योदय के साथ उपवास समाप्त होता है और सभी को ऊर्जा का पुनः प्रवाह मिलता है। यह क्रमिक प्रक्रिया मन को शांत और शरीर को स्वस्थ बनाती है।

Govind Kumar अक्तूबर 1 2025

छठ पूजा का ऐतिहासिक महत्व अत्यंत गहरा है और इसे वैदिक ग्रन्थों में वर्णित किया गया है। इस उत्सव में सूर्य देवता को धन्यवाद देने के साथ ही पर्यावरणीय जागरूकता भी बढ़ती है। नदी किनारे स्वच्छता के नियम कड़ाई से लागू होते हैं, जिससे जल प्रदूषण पर नियंत्रण रहता है। वर्तमान में बिहार सरकार ने प्लास्टिक प्रतिबंध जैसे कदम उठाए हैं, जो व्यावहारिक रूप से सराहनीय हैं। यह सभी सामाजिक वर्गों में एक सकारात्मक परिवर्तन को संकेत देता है।

Shubham Abhang अक्तूबर 1 2025

छठ पूजा में जल‑स्नान, प्राकृत भोजन, और अर्घ्य का संयोजन, यह सब बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे शरीर और आत्मा दोनों को शुद्धि मिलती है, और साथ ही पर्यावरण को भी लाभ होता है, इस कारण से हम सभी को इस परम्परा को सराहना चाहिए, और प्लास्टिक मुक्त अर्घ्य को सख्ती से लागू करना चाहिए, ताकि नदी की स्वच्छता बनी रहे।

Trupti Jain अक्तूबर 1 2025

छठ पूजा का उत्सव रंगीन, शानदार और जीवंत है, जहाँ हर कोई उत्साह से भर जाता है। नहाय‑खाय में दही‑भात, टहटहा और ठंडा जल का आनंद लिया जाता है, जिससे शारीरिक ऊर्जा बढ़ती है। खरना के दौरान केवल फल और जल से पोषण होता है, जिससे शुद्धता का अनुभव मिलता है। संध्या अर्घ्य में सूर्यास्त के समय दो टोकरी में जल और बांस की थाली पर फल‑फूल अर्पित होते हैं। उषा अर्घ्य में सूर्योदय के साथ उपवास समाप्त हो जाता है और सभी को पुनः ऊर्जा प्राप्त होती है। इस प्रकार की परम्पराएँ समाज में एकजुटता को बढ़ावा देती हैं।

deepika balodi अक्तूबर 1 2025

छठ पूजा का समय ऊपर बताया गया है, इसे कॉपी‑पेस्ट कर लें।

Priya Patil अक्तूबर 1 2025

छठ पूजा के चार दिवसीय कार्यक्रम में प्रत्येक चरण का समय बहुत ही सटीक है, यह जानकारी जनता को समय पर अर्घ्य करने में मदद करती है। नहाय‑खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य सभी मिलकर एक पूर्ण धार्मिक अनुशासन बनाते हैं। इस वर्ष भी सरकार ने नदी‑किनारे स्वच्छता के लिए प्लास्टिक प्रतिबंध लागू किया है, जो पर्यावरण के लिए लाभदायक है। सभी को समय‑सारिणी का पालन करके अपनी इच्छाओं की पूर्ति की कामना है।

Rashi Jaiswal अक्तूबर 1 2025

छठ पूजा में पंचांग के हिसाब से सही टाइमिंग होना बहुत ज़रूरी है 🙌 और यह लेख बिल्कुल सही जानकारी देता है।

Maneesh Rajput Thakur अक्तूबर 1 2025

यदि आप सोचते हैं कि छठ पूजा सिर्फ धार्मिक समारोह है, तो आप सबूतों को नजरअंदाज़ कर रहे हैं। यह कार्यक्रम जल संरक्षण, प्लास्टिक मुक्त अर्घ्य आदि के माध्यम से पर्यावरणीय जागरूकता को बढ़ावा देता है। साथ ही, सरकार की नीतियों के साथ यह एक सामाजिक आंदोलन बन गया है। इस प्रकार यह न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और वैज्ञानिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।

ONE AGRI अक्तूबर 1 2025

छठ पूजा का यह अद्भुत उत्सव, जो प्राचीन वैदिक ग्रंथों में वर्णित है, वह न केवल आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक एकीकरण का भी प्रमुख माध्यम है। इसके चार प्रमुख चरण-नहाय‑खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य-हर एक दिन के साथ हमें विभिन्न आध्यात्मिक और शारीरिक लाभ प्रदान करते हैं। नहाय‑खाय में हम अपने शारीरिक शुद्धि के लिए नदियों में स्नान करते हैं, जो शरीर के विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है, और साथ ही मन को शांति मिलती है। खरना में केवल फल, पानी और गुड़ के सेवन से शरीर को हल्का रखता है, जिससे ऊर्जा का पुनः सृजन होता है। संध्या अर्घ्य में सूर्य के अस्त होते ही दो टोकरी में जल और फल‑फूल अर्पित होते हैं, जो प्रकृति के प्रति कृतज्ञता दर्शाते हैं। उषा अर्घ्य में सूर्य के उगते ही अर्घ्य समाप्त होता है, जिससे दिन की शुरुआत ऊर्जा से भरपूर होती है। इस परम्परा में पर्यावरणीय पहल भी सम्मिलित है; नदी किनारे प्लास्टिक मुक्त अर्घ्य और स्वच्छता अभियान हमारे जल स्रोतों को संरक्षित रखने में मदद करता है। बिहार सरकार द्वारा प्लास्टिक प्रतिबंध, स्थानीय प्रशासन द्वारा सफाई मुहीम, और जनजागरूकता के माध्यम से पर्यावरणीय संरक्षण को बढ़ावा दिया गया है। इसके अतिरिक्त, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर लाइव‑स्ट्रीमिंग जैसी तकनीकी पहलें ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सांस्कृतिक आदान‑प्रदान को आसान बनाती हैं। छठ पूजा के इस उत्सव में सामाजिक समरस्ता, पारिवारिक बंधन और पर्यावरणीय सजगता के तत्वों का मिश्रण एक सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करता है। इस प्रकार यह न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक, पर्यावरणीय, आर्थिक और तकनीकी रूप से भी समृद्धि का स्रोत बन चुका है।

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