भारत के अंतरिक्ष स्टार्टअप्स ने पिछले कुछ वर्षों में काफी तरक्की की है। अग्निकुल कॉसमॉस, एक स्टार्टअप जो आईआईटी मद्रास में स्थापित हुआ, ने एक विशेष मील का पत्थर हासिल किया है। इसने 30 मई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित निजी लॉन्चपैड धनुष से भारत का पहला रॉकेट प्रारंभ किया। इस रॉकेट का नाम अग्निबान SOrTeD है, जो एक सेमी-क्रायोजेनिक इंजन से संचालित है और छोटे उपग्रहों के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिसमें 30 किलोग्राम से 300 किलोग्राम के बीच की भार क्षमता है।
इस मिशन ने भारत के बढ़ते अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी खिलाड़ियों के लिए नए द्वार खोले हैं। अग्निकुल कॉसमॉस की इस सफलता के पीछे उनके द्वारा विकसित की गई अत्याधुनिक तकनीक का बड़ा योगदान है। इस रॉकेट में दुनिया का पहला 3डी-प्रिंटेड सेमी-क्रायोजेनिक इंजन इस्तेमाल किया गया है, जिसे कंपनी ने खुद विकसित किया है। अग्निकुल कॉसमॉस अब इस वित्तीय वर्ष के अंत तक एक ऑर्बिटल मिशन की तैयारियों में लगी हुई है और उनके ग्राहकों के लिए 2025 से फ्लाइट्स शुरू करने की योजना है।
अग्निकुल कॉसमॉस की सफलता भारत सरकार द्वारा अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी कंपनियों के लिए किये गए प्रयासों का भी परिणाम है। मई 2020 में, सरकार ने IN-SPACe की स्थापना की, जो कि निजी क्षेत्र को ISRO की संपत्तियों से लाभान्वित होने का अवसर प्रदान करता है। अप्रैल 2023 में केंद्र सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 को मंजूरी दी, जो इस क्षेत्र में निजी निवेश को प्रोत्साहित करती है।
सरकार ने अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को भी अनुमति दी है, जिसने निजी क्षेत्र को और भी बड़ा उत्कर्ष प्रदान किया है। अत्याधुनिक कंपनियाँ जैसे कि गॉडरेज, एचएएल, अनंत टेक्नोलॉजीज़ और डेटा पैटर्न्स ISRO के अंतरिक्ष उपकारों के लिए घटक प्रदान करती हैं। वहीं, नवोदित स्टार्टअप्स जैसे ध्रुवा स्पेस, स्काईरूट और अग्निकुल कॉसमॉस अंतरिक्ष क्षेत्र में नई और नवाचारी तकनीकें ला रहे हैं।
IN-SPACe निजी अंतरिक्ष गतिविधियों को नियमित करता है और इस बात को सुनिश्चित करता है कि कोई रणनीतिक और सुरक्षा हितों का उल्लंघन न हो। इसके माध्यम से निजी कंपनियाँ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अनुभव और संसाधनों का लाभ उठा सकती हैं, जिससे उनकी तकनीकी प्रगति में तेजी आती है।
भारतीय अंतरिक्ष उद्योग के स्टार्टअप्स की संख्या 2014 में एक से बढ़कर 2023 में 189 हो गई है और इसमें कुल निवेश $124.7 मिलियन तक पहुँच गया है। भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का आकार 2023 में $8.4 बिलियन से बढ़कर 2033 तक $44 बिलियन और 2040 तक $100 बिलियन तक पहुँचने की संभावना है।
इन सबके बीच अग्निकुल कॉसमॉस का यह कदम केवल शुरुआत है। यहाँ से आगे और भी अनेक स्टार्टअप्स इस दिशा में कदम रखेंगे और अंतरिक्ष में भारत की धाक जमाएंगे। अब सवाल उठता है कि क्या यह भारतीय अंतरिक्ष यात्रा की नई कहानी का आरंभ है? जिस तरह से तकनीक और नीति में सुधार हो रहे हैं, ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय अंतरिक्ष उद्योग का भविष्य उज्ज्वल है।