अगर आप स्टॉक मार्केट में नई शुरुआत कर रहे हैं तो "शॉर्ट‑सेलिंग" शब्द शायद सुन चुके होंगे, पर इसका मतलब ठीक से नहीं जानते। यहाँ हम इसको सीधी भाषा में समझेंगे ताकि आप बिना उलझन के जान सकें कि कब और कैसे इसे इस्तेमाल करना है.
सबसे पहले, शॉर्ट‑सेलिंग का मूल विचार ये है कि आप किसी शेयर को उधार लेकर बेचते हैं। अगर आपके अनुमान सही रहे और वह शेयर बाद में गिर जाए तो आप उसे कम दाम पर खरीद कर वापस दे देते हैं। इस अंतर ही आपका मुनाफा बनता है. उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए आप एबीसी कंपनी का स्टॉक ₹200 में उधार ले कर बेचते हैं। दो हफ्ते बाद वह शेयर ₹150 तक गिर जाता है। आप वही शेयर ₹150 में खरीदकर दे देते हैं और ₹50 आपका लाभ रहता है.
ऐसा करने के लिए आपको ब्रोकरेज फर्म से शेयर उधार लेने की जरूरत पड़ती है, इसलिए हर ब्रोकर के पास अलग‑अलग नियम हो सकते हैं. कुछ ब्रोकर केवल हाई वैल्यू वाले स्टॉक्स पर शॉर्टिंग की अनुमति देते हैं, तो कुछ में लिमिटेड मात्रा में ही कर सकते हैं.
शॉर्ट‑सेलिंग में जोखिम भी बहुत बड़े होते हैं। अगर आपका अनुमान गलत निकला और शेयर कीमत बढ़ गई, तो आपको वह शेयर पहले से ज्यादा दाम पर खरीदना पड़ेगा. मान लीजिए वही एबीसी स्टॉक ₹200 से शुरू हो कर ₹300 तक चढ़ जाता है, तो आपको अतिरिक्त ₹100 का नुकसान होगा. यह नुकसान theoretically अनिश्चित होता है – यानी कीमत जितनी ऊपर जाएगी, आपका नुक्सान उतना ही बढ़ेगा.
इन जोखिमों को कम करने के लिए आप कुछ आसान कदम उठा सकते हैं:
अगर आप अभी भी शॉर्ट‑सेलिंग में हाथ आजमाना चाहते हैं तो पहले डेमो अकाउंट या पेपर ट्रेडिंग से अभ्यास करें. इससे आप बिना वास्तविक पैसे के देख पाएँगे कि आपके अनुमान कैसे काम करते हैं.
सारांश में, शॉर्ट‑सेलिंग एक ताकतवर टूल है लेकिन इसे सावधानी से इस्तेमाल करना चाहिए. सही समझ और जोखिम प्रबंधन के साथ ही आप इस तकनीक से अच्छा रिटर्न कमा सकते हैं. अब जब आपको बुनियादी बातें पता चल गईं हैं, तो आगे की पढ़ाई या विशेषज्ञों की सलाह लेकर अपने निवेश को और मजबूत बनाइए.
हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपने हालिया पोस्ट में भारत से जुड़े एक महत्वपूर्ण खुलासे के संकेत दिए हैं। पिछले साल अदानी समूह पर लगाए गंभीर आरोपों के कारण चर्चा में आई इस अमेरिकी फर्म की नई रिपोर्ट को लेकर निवेशक और बाजार विश्लेषक उत्सुक हैं। अदानी समूह ने आरोपों का खंडन किया जबकि सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें क्लीन चिट दी है।