आप ने सुना होगा ‘एंजल टैक्स’ के बारे में, पर असली बात समझी है या नहीं? सरल शब्दों में कहें तो यह टैक्स तब लगता है जब कोई एंजल इन्वेस्टर (निवेशक) स्टार्टअप को बहुत कम वैल्युशन पर शेयर बेचता है। सरकार इसको ‘कम कीमत पर शेयर बिक्री’ मानती है और उस अंतर पर कर लेती है। अब सवाल उठता है – कब, किसे और कैसे?
सबसे पहले देखिए कि कौन से मामलों में यह लागू होता है:
अगर इन सभी शर्तों में से एक भी नहीं मिलती तो एंजल टैक्स नहीं लगेगा। ध्यान रखें कि ‘बाजार मूल्य’ का निर्धारण राजस्व विभाग के नॉर्म्स पर होता है, इसलिए सही वैल्युएशन रिपोर्ट बनवाना ज़रूरी है।
अब बात करते हैं कैसे बचा जाए इस टैक्स से:
इन उपायों को अपनाकर आप न सिर्फ टैक्स बचा सकते हैं, बल्कि निवेशकों के साथ भरोसेमंद संबंध भी बना सकते हैं। याद रखें, सही दस्तावेज़ीकरण और समय पर रिटर्न फाइलिंग बहुत अहम है।
अगर अभी भी कोई शंका है तो किसी टैक्स सलाहकार से मिलें। छोटे‑छोटे कदम आपके स्टार्टअप को बड़े नुकसान से बचा सकते हैं। एंजल टैक्स को समझना आसान नहीं, लेकिन सही जानकारी और प्रोफेशनल मदद से आप इसे आसानी से हेंडल कर सकते हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2024 में दशक पुराने एंजल टैक्स को समाप्त करने का प्रस्ताव रखा है, जो स्टार्टअप इकोसिस्टम के लिए एक महत्वपूर्ण सुधार है। यह टैक्स 2012 में मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के लिए लागू किया गया था और स्टार्टअप्स को निवेश में रुकावट का सामना करना पड़ता था। इस कदम का निवेशकों और स्टार्टअप फाउंडर्स द्वारा स्वागत किया गया है।