जब भी हम स्कूल या कॉलेज में पढ़ाई शुरू करते हैं, अक्सर दीवार पर या किताबों के कवर पर एक सफेद वस्त्रधारी महिला दिखती है। वही है हमारी माँ सरसवती – ज्ञान और कलाओं की देवी। वह हमें सीखने का उत्साह देती हैं, चाहे वो गणित हो या संगीत, साहित्य हो या चित्रकला। इस लेख में हम उनके महत्व, पूजा के आसान तरीके और व्रत के नियमों को सरल भाषा में समझेंगे ताकि आप जल्दी से शुरू कर सकें।
सबसे पहले एक साफ जगह चुनें, जैसे घर का छोटा कमरा या बालकनी। वहाँ सरसवती की मूर्ति या तस्वीर रखें और चारों ओर सफ़ेद कपड़े से ढँक दें। फिर हल्दी‑पिचकारी (हल्दी + पानी) को थोड़ा सा घोलकर पूजा स्थल पर छिड़कें, इससे ऊर्जा शुद्ध होती है। अब एक छोटा धूपबत्ती लगाएँ और अगर आपका घर में धुप नहीं है तो लौकी के तेल से भी दीप जला सकते हैं।
पाठ्य सामग्री तैयार रखें – दो अक्षर (अ और आ) लिखे हुए कागज़, किताबें, कलम या पेंसिल। इन सभी वस्तुओं को देवी की बगल में रख दें। फिर सरसवती मंत्र ‘या कुंता महा सुदा शंकरा’ का उच्चारण तीन बार करें। इसके बाद थोड़ा सा फूल, फल और मिठाई (जैसे चावल‑केक) रखें। अंत में एक छोटा जल-प्रकाश (ग्लास में पानी) डालें और इसे पूजा स्थल पर रख दें। यह सभी को संतुलित ऊर्जा देता है।
पूजा के बाद कुछ समय शांति से बैठें, आँखें बंद करके गहरी साँस लें। इस दौरान मन में सरसवती की कृपा माँगें – जैसे पढ़ाई में तेज़ी या रचनात्मक कामों में सफलता। यह साधारण कदम आपके घर में सकारात्मक माहौल लाएगा और आपका ध्यान केंद्रित रहेगा।
सरसवती व्रत आमतौर पर वैषाखी या शरद ऋतु में रखा जाता है, लेकिन कोई भी दिन चुना जा सकता है जब आप खाली समय रखें। व्रत शुरू करने से पहले स्नान करके सफ़ेद कपड़े पहनें और सख्त पानी न पीएँ – केवल फल, मिठाई और दही ही खाएँ। सुबह उठते ही सरसवती मंत्र का जाप करें, फिर एक छोटा योग या प्राणायाम कर लें; इससे मन शांत रहता है।
व्रत के दौरान ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करें। आप कोई भी शास्त्रीय गीत सुन सकते हैं या बुनियादी रागों को गा सकते हैं – यह आपके मस्तिष्क में नई ताजगी लाता है। व्रत का मुख्य लक्ष्य आत्म-ज्ञान बढ़ाना और मन को साफ़ रखना है, इसलिए सोशल मीडिया से दूर रहें और किताबें पढ़ें।
व्रत के सातवें दिन सरसवती पूजा विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है। इस दिन आप अपने अध्ययन सामग्री (जैसे नोटबुक या लैपटॉप) को देवी की थाली में रख दें और धन्यवाद कहें। फिर हल्का फल‑सलाद खा कर व्रत समाप्त करें। इससे आपकी पढ़ाई में गति आएगी और रचनात्मक सोच विकसित होगी।
सरसवती के बारे में एक रोचक बात यह है कि उनका वाहन हंस (स्वान) है, जो शुद्धता का प्रतीक है। इसलिए पूजा स्थल पर सफ़ेद फूल या मोती भी रख सकते हैं। ये छोटे‑छोटे कदम आपके घर की ऊर्जा को साफ़ कर देंगे और आपको सीखने में मदद करेंगे।
इन सरल तरीकों से आप न सिर्फ देवी सरसवती की कृपा प्राप्त करेंगे, बल्कि अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में स्पष्टता और सृजनशीलता भी महसूस करेंगे। अब देर किस बात की? आज ही एक छोटी सी पूजा सेट करें और सीखने के नए रास्ते खोलें।
बसंत पंचमी का त्योहार, जो 2 फरवरी 2025 को मनाया जाएगा, वसंत ऋतु के आगमन का आयोजन करता है और देवी सरस्वती को समर्पित है। इस दिन को ज्ञान और कला की देवी सरस्वती का जन्मदिन माना जाता है। पुराणों के अनुसार, देवी सरस्वती का जन्म ब्रह्मा जी के कमंडल से हुआ था जिसने संसार को ध्वनि और वाणी दी। इस दिन का महत्व शिक्षा और सृजनात्मकता में वृद्धि के लिए देवी सरस्वती की पूजा करने में निहित है।