छत्रगांठा – क्या है और क्यों महत्वपूर्ण?

जब हम छत्रगांठा, भक्तों द्वारा सूर्य देव को सम्मानित करने के लिए छत्र (छाता) बंधाकर की जाने वाली रस्म. छत्रगांठ के नाम से भी जानी जाती है, यह मुख्य रूप से बिहार, उत्तरी भारत में स्थित राज्य जहाँ छठ पूजा का मुख्य केंद्र है में मनाई जाती है। साथ ही, यह छठ पूजा, सूर्य देव की स्तुति हेतु आयोजित प्रमुख हिन्दू त्योहार का अभिन्न हिस्सा है, जो सूर्य देव के आराधन से जुड़ा है।

छत्रगांठा की जड़ें प्राचीन वैदिक समय तक जा सकती हैं, जब सूर्य को साक्षात शक्ति मानकर उन्हें विशेष छत्र प्रदान किया जाता था। आज भी, श्रद्धालु इस छत्र को घाट पर या खुले आसमान के नीचे बांधते हैं, जिससे सूर्य के प्रकाश और ऊर्जा को अभिषेक माना जाता है। इस प्रक्रिया में जल, संगीतमय भजन और प्रसाद का वितरण शामिल है, जो सामुदायिक भावना को मजबूत करता है।

छत्रगांठा की मुख्य रस्में और तिथियां

रसमों में सबसे पहला कदम ‘रसोइ’ है, जहाँ भक्त अपने घर या घाट पर स्वच्छता और शुद्धता का प्रबंधन करते हैं। फिर ‘सुर्यास्त’ के समय छत्र बंधन होता है, जिसमें कई लोग मिलकर एक बड़ा छत्र बनाते हैं और उसे सूर्य के सामने स्थापित करते हैं। इस दौरान सूर्य देव, प्रकाश और जीवन के स्रोत के रूप में पूज्य देवता की आराधना की जाती है। छत्रगांठा का उच्चतम बिंदु ‘उड़ान’ है, जहाँ प्रसाद को हवा में फेंका जाता है, जिससे सभी बुराइयाँ दूर होती हैं।

तिथियों के अनुसार, छत्रगांठा आमतौर पर छठ पूजा के प्रमुख दो दिनों में – ‘खरना’ और ‘उठनी’ – मनाया जाता है। ये तिथियां चंद्र कैलेंडर के शुक्ल पक्ष में आते हैं और प्रत्येक वर्ष बदलती रहती हैं। 2025 में, छठ पूजा 25‑28 अक्टूबर के बीच होगी, इसलिए छत्रगांठा के प्रमुख आयोजन भी इन दिनों के आसपास होंगे। इस अवधि में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़े समूह इकट्ठे होते हैं, जो एक बड़ी सांस्कृतिक झलक पेश करते हैं।

छत्रगांठा का सामाजिक प्रभाव भी कम नहीं है। यह केवल धार्मिक कार्य नहीं, बल्कि समुदाय को एक साथ लाने वाला एक मंच है। स्थानीय व्यवसायी इस अवसर पर ठेले लगाते हैं, जिससे आर्थिक लाभ बढ़ता है। साथ ही, युवा वर्ग इस समारोह में भाग लेकर अपने सांस्कृतिक मूल्यों को समझता है और आत्मविश्वास विकसित करता है। इस प्रकार छत्रगांठा एक सामाजिक-धार्मिक पुल बन जाता है, जो पारंपरिक मूल्य को नई पीढ़ी तक पहुँचाता है।

बिहार में छत्रगांठा की तैयारी अक्सर पहले ही महीने शुरू हो जाती है। स्थानीय प्रशासन जल स्रोतों की सफाई, सुरक्षा उपाय और यातायात प्रबंधन पर विशेष ध्यान देता है। इस दौरान, स्वच्छता अभियानों और स्वास्थ्य जाँच भी चलती हैं, जिससे बड़े भीड़ में किसी भी तरह की समस्या से बचा जा सके। यदि आप पहली बार भाग ले रहे हैं, तो यह जानना उपयोगी रहेगा कि किन चीज़ों का ध्यान रखें – जैसे कि हल्का कपड़ा, पानी की बोतल, और सूरज की तेज़ी से बचाव के लिए छाता।

छत्रगांठा के कई रोचक पहलू होते हैं जो अक्सर अनदेखे रह जाते हैं। उदाहरण के लिए, छत्र की बनावट और रंग का चुनाव मौसम और सूर्य की दिशा पर निर्भर करता है। कुछ समुदायों में छत्र को सुनहरा रंग दिया जाता है, जबकि अन्य में नीला या हरा रंग पसंद किया जाता है, जो पृथ्वी और जल के साथ समंजन दर्शाता है। इसके अलावा, संगीत में ‘अर्घ्य’ की ध्वनि और ‘परसों’ की औट-बहुत ही खास होते हैं, जो भक्तों के दिल को छू लेती है।

आज के डिजिटल युग में, छत्रगांठा को सोशल मीडिया पर भी बड़ी हलचल मिलती है। कई लोग लाइव स्ट्रीमिंग के माध्यम से अपने परिवार और मित्रों को इस रस्म में शामिल करते हैं, जिससे दूरस्थ रिश्ते भी मजबूत होते हैं। यह ऑनलाइन सहभागिता स्थानीय संस्कृति को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में मददगार सिद्ध होती है।

छत्रगांठा के बारे में जानने के बाद, आप अब आगे पढ़ने वाले लेखों में इस विषय से जुड़ी विभिन्न पहलुओं को देख पाएँगे – जैसे कि 2025 की छठ पूजा तिथियां, बिहार में विशेष स्थल और नियम, तथा इस रस्म के पर्यावरणीय असर। इन जानकारीयों से आप न सिर्फ खुद को तैयार कर पाएँगे, बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी सही दिशा दे सकेंगे। अब आइए, नीचे दिए गए पोस्ट्स में गहराई से देखें कि छत्रगांठा और उससे संबंधित घटनाएँ किस तरह से हमारे दैनिक समाचारों में छाए हुए हैं।

Shubhi Bajoria 27 सितंबर 2025

चैत्र नवरात्रि 2025: माँ <strong>छत्रगांठा</strong> के उपविधि और मंगल‑दोष निवारण के उपाय

31 मार्च 2025 को चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन को माँ छत्रगांठा को समर्पित किया जाता है। इस दिन के लिए विशेष मुहूर्त, रंग, पूजा सामग्री और मंत्र बताए गए हैं। अर्जुन‑राशि वालों के लिए मंगल‑दोष निवारण के उपाय भी इस लेख में शामिल हैं। सही तैयारी से मन की शांति, साहस और रिश्तों में समरसता आती है।