बिहार चुनाव 2025: एनडीए की भव्य जीत, नीतीश कुमार का रिकॉर्ड दसवां कार्यकाल

बिहार चुनाव 2025: एनडीए की भव्य जीत, नीतीश कुमार का रिकॉर्ड दसवां कार्यकाल
Shubhi Bajoria 15 नवंबर 2025 0 टिप्पणि

बिहार की विधानसभा चुनाव परिणाम 14 नवंबर 2025 को घोषित होने के बाद, राज्य की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हो गया। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने 243 सीटों में से 202 सीटें जीतकर भव्य बहुमत हासिल किया, जिसके साथ नीतीश कुमार राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में रिकॉर्ड दसवां कार्यकाल पूरा करने वाले हैं। इस जीत के साथ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने बिहार की विधानसभा चुनाव में पहली बार सबसे अधिक सीटें जीतीं — 89 सीटें — जबकि जनता दल (यूनाइटेड) (जेडीयू) ने 85 सीटें अपने नाम कीं। यह जीत सिर्फ एक नतीजा नहीं, बल्कि बिहार के राजनीतिक नक्शे में एक गहरा बदलाव है।

महागठबंधन का धराशायी अंत

दूसरी ओर, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेतृत्व वाला महागठबंधन (एमजीबी) अल्पसंख्यक बन गया — केवल 35 सीटें। यह आरजेडी के लिए 2010 के बाद पहली बार है जब वह तीसरे स्थान पर रह गया। नेता तेजश्वी यादव के नेतृत्व में इस गठबंधन की नीति, अक्सर एक निश्चित समुदाय के प्रति एकतरफा निर्भरता के आधार पर बनी थी, जिसकी असफलता चुनावी परिणामों में स्पष्ट दिखी। विशेष रूप से, वह अपने पारंपरिक आधार के भीतर भी फिसल गया — मुस्लिम बहुल इलाकों में आरजेडी और सीपीआई(एमएल) लिबरेशन ने कोई सीट नहीं जीती।

मुस्लिम मतदाताओं का नया रास्ता

सबसे आश्चर्यजनक बदलाव उत्तरी बिहार के सीमांचल क्षेत्र में आया। आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने पांच सीटें — बैसी, जोकिहाट, बहादुरगंज, कोचाधामन और आमौर — जीतीं। यह पहली बार है जब एआईएमआईएम ने बिहार में इतनी बड़ी सफलता हासिल की। एक टाइम्स ऑफ इंडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस इलाके के मुस्लिम मतदाताओं ने अपने वोट से कहा — ‘हम अब केवल हिंदू-नेतृत्व वाली पार्टियों के बारे में नहीं सोच रहे, हम एक ऐसी पार्टी को चाहते हैं जो हमारी है।’ यह सिर्फ एक वोट नहीं, बल्कि एक सामाजिक संकल्प है।

महिला मतदाताओं का ऐतिहासिक योगदान

चुनाव का एक और बड़ा पहलू था महिला मतदाताओं की भागीदारी। निर्वाचन आयोग ऑफ इंडिया के अनुसार, महिलाओं ने 71.78 प्रतिशत के साथ पुरुषों (62.98 प्रतिशत) को पीछे छोड़ दिया। यह बिहार के इतिहास में महिलाओं की सबसे अधिक वोट देने की दर है। राज्य के 90,740 मतदान केंद्रों पर चुनाव प्रक्रिया शांति से संपन्न हुई — कोई अनियमितता नहीं दर्ज की गई। यह आंकड़ा बताता है कि महिलाएं अब सिर्फ वोट देने के लिए नहीं, बल्कि राजनीति के निर्णय लेने में सक्रिय भागीदार बन चुकी हैं।

एक नई राजनीतिक अलायंस का जन्म

एक नई राजनीतिक अलायंस का जन्म

नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू ने 2010 के बाद अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन किया। लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) (एलजेपी-आरवी) और राष्ट्रीय लोक मोर्चा भी पहली बार विधानसभा में प्रवेश कर गए। चिराग पासवान के नेतृत्व में एलजेपी-आरवी के सदस्य संजय कुमार सिंह ने सिमरी बख्तियारपुर से जीत हासिल की। यह सब एक नए गठबंधन के निर्माण का संकेत है — जो केवल बीजेपी और जेडीयू के बीच सीमित नहीं, बल्कि छोटी पार्टियों को भी शामिल करता है।

कुछ निश्चित नतीजे, कुछ अनसुलझे सवाल

कुछ सीटों के परिणाम बहुत रोचक रहे। रामगढ़ में बहुजन समाज पार्टी के सतीश कुमार यादव ने बीजेपी के वर्तमान विधायक अशोक कुमार सिंह को केवल 30 वोटों से हराया। बोधगया में कुमार सर्वजीत को 881 वोटों के अंतर से जीत मिली। हयाघाट में बीजेपी के राम चंद्र प्रसाद ने सीपीआई(एम) के श्याम भारती को हराया। ये छोटे अंतर बताते हैं कि गांवों और छोटे शहरों में वोटर्स अभी भी व्यक्तिगत नेतृत्व और स्थानीय समस्याओं पर फोकस कर रहे हैं।

अगला कदम: नीतीश का दसवां कार्यकाल

अगला कदम: नीतीश का दसवां कार्यकाल

14 नवंबर को परिणाम घोषित होने के तुरंत बाद, चिराग पासवान ने नीतीश कुमार से मुलाकात की। हालांकि, एनडीए ने अभी तक सरकार गठन के लिए आधिकारिक घोषणा नहीं की है। लेकिन सब कुछ बता रहा है कि नीतीश कुमार का 14 नवंबर के बाद ही दसवां कार्यकाल शुरू हो जाएगा। उनके लिए यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है — एक ऐसा नेता जिसने अपनी राजनीति को बार-बार बदला, लेकिन अपनी जनता के विश्वास को कभी नहीं खोया।

क्या बिहार अब अलग राजनीति बनाएगा?

यह चुनाव सिर्फ एक बहुमत का नतीजा नहीं, बल्कि एक नई राजनीतिक संस्कृति का संकेत है। महिलाओं की बढ़ती भागीदारी, मुस्लिम मतदाताओं का नया विकल्प, छोटी पार्टियों का उभार, और बीजेपी का अब तक का सबसे बड़ा बिहारी विजय — ये सब एक नए राजनीतिक संतुलन की ओर इशारा करते हैं। अब सवाल यह है कि क्या एनडीए इस विविधता को समझ सकता है? क्या वह एक ऐसी सरकार बना पाएगा जो सिर्फ बहुमत का नहीं, बल्कि विविधता का भी सम्मान करे?

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

नीतीश कुमार का दसवां कार्यकाल क्यों ऐतिहासिक है?

नीतीश कुमार भारत के एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने एक राज्य में दस बार कार्यकाल पूरा किया है। यह उनकी राजनीतिक लचीलापन, गठबंधन बनाने की क्षमता और निरंतर जनसमर्थन का प्रमाण है। उन्होंने 2005 से लेकर 2025 तक अलग-अलग गठबंधनों में रहकर भी लगातार विजय प्राप्त की है — जिसका कोई अन्य भारतीय राजनेता नहीं कर सका।

एआईएमआईएम की बिहार में जीत का क्या महत्व है?

एआईएमआईएम की बिहार में पांच सीटें जीतना एक ऐतिहासिक बदलाव है। इससे पहले, मुस्लिम मतदाता हमेशा आरजेडी या अन्य हिंदू-नेतृत्व वाली पार्टियों के साथ गठबंधन बनाते थे। अब वे एक ऐसी पार्टी को चुन रहे हैं जो उनकी अपनी पहचान को दर्शाती है। यह भविष्य में अन्य राज्यों में भी मुस्लिम वोटर्स की राजनीति को बदल सकता है।

महिला मतदाताओं की भागीदारी ने चुनाव को कैसे प्रभावित किया?

71.78 प्रतिशत महिला मतदान दर ने बिहार के राजनीतिक वातावरण को बदल दिया। इस भागीदारी ने बीजेपी और जेडीयू के ग्रामीण आधार को मजबूत किया, जहां महिलाएं स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर अधिक ध्यान देती हैं। यह निर्वाचन आयोग के लिए एक नया मॉडल है — जहां महिला सक्रियता राजनीतिक परिणाम को निर्धारित करती है।

क्या बीजेपी की बिहार में यह जीत राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव डालेगी?

हां। बिहार में बीजेपी की सबसे अधिक सीटें जीतने से उसकी उत्तर भारत में राजनीतिक प्रबलता का पुष्टीकरण हुआ है। यह जीत उसे 2029 के लोकसभा चुनाव के लिए एक मजबूत आधार देती है, खासकर जब यह गठबंधन बनाने में छोटी पार्टियों को सफलतापूर्वक शामिल कर पाया है।

क्या आरजेडी का भविष्य खत्म हो गया है?

नहीं, लेकिन यह उसके लिए एक गहरी आत्म-जांच का समय है। आरजेडी ने अपने आधार को बरकरार नहीं रखा — न तो मुस्लिम मतदाताओं को बनाए रखा, न ही अन्य समुदायों को आकर्षित किया। अब उन्हें अपनी रणनीति को पूरी तरह से फिर से सोचना होगा, वरना वह बिहार की राजनीति से धीरे-धीरे बाहर हो सकती है।

2029 के चुनाव के लिए क्या बदलाव देखे जा सकते हैं?

2029 में एनडीए की जीत का रास्ता आसान नहीं होगा। अगर एलजेपी-आरवी और आरएलएम अपनी स्थिति को मजबूत करते हैं, तो वे एक नया गठबंधन बना सकते हैं। आरजेडी भी अपने आधार को फिर से बनाने की कोशिश करेगा। महिला मतदाताओं और युवाओं के बीच राजनीतिक उत्साह बढ़ रहा है — जो अगले चुनाव का निर्णय ले सकता है।