भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध समाप्त करने के लिए हुए समझौते ने दोनों देशों के संबंधों में एक नई दिशा का संकेत दिया है। यह कदम न केवल सीमा पर लंबे समय से चली आ रही तनावपूर्ण स्थिति को समाप्त करने की दिशा में है, बल्कि दोंनों देशों की विदेश नीतियों में बदलाव के संकेत भी हैं। इस समझौते की पुष्टि चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने की, जिससे यह स्पष्ट होता है कि दोनों देश एक-दूसरे के साथ परस्पर संवाद और सामरिक प्रयासों द्वारा सीमा संबंधित मुद्दों का समाधान खोजने के इच्छुक हैं।
समझौते के अनुसार, दोनों देशों की सेनाएं अपनी पूर्व-अप्रैल 2020 की स्थिति में लौटेंगी और विवादास्पद क्षेत्रों जैसे देपसांग और डेमचोक में गश्ती प्रणाली को पुनः स्थापित करेगी। यह न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि भविष्य में किसी भी अनिर्णीत मुद्दों के समाधान की गुंजाइश भी प्रदान करता है। यह कदम भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा पूर्व में व्यक्त की गई आशाओं की पूर्ति करता है, जिन्होंने कहा था कि लगभग 75% अलगाव के मुद्दों का समाधान हो चुका है, लेकिन गश्ती व्यवस्थाओं की स्थापना अब भी एक प्रमुख चुनौती है।
समझौते से यह स्पष्ट होता है कि दोनों देश अपनी विदेश नीतियों में कैसे बदलाव कर रहे हैं और विवादित मुद्दों को कैसे संबोधित कर रहे हैं। भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि यह समझौता सैनिकों की वापसी की दिशा में जरूरी कदम उठाने में सहायक होगा और 2020 में उभरे मुद्दों को भी प्राथमिकता से संबोधित करेगा। इसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच किसी भी संभावित संघर्ष को कम करना और एक स्थिरता की दिशा में बढ़ना है।
सैन्य और कूटनीतिक वार्ता के एक श्रृंखला के बाद यह समझौता संभव हो पाया, जिसमें हाल ही में बीजिंग में आयोजित 31वीं भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए कार्यकारी तंत्र (WMCC) वार्ता शामिल थी। इस प्रकार की वार्ताओं के माध्यम से दोनों देश यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि सीमा पर किसी भी प्रकार की अस्थिरता से बचा जा सके और दीर्घकालिक स्थिरता स्थापित हो सके।
इन नवीन घटनाओं के पश्चात, उम्मीद की जा सकती है कि दोनों देश एक अधिक सौहार्द्रपूर्ण संबंध स्थापित करने की दिशा में लगातार आगे बढ़ रहे हैं, जो कि केवल क्षेत्रीय ही नहीं बल्कि वैश्विक स्थिरता के लिए भी आवश्यक है।