जब हम वायु गुणवत्ता, हवा में मौजूद प्रदूषकों के स्तर को दर्शाती है. इसे कभी‑कभी हवा की सफ़ाई भी कहा जाता है। इस शब्द को समझना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि यह सीधे हमारे स्वास्थ्य, मिलनसारिता और आर्थिक उत्पादकता से जुड़ा है। भारत में कई बड़े शहरों में PM2.5 और स्मॉग की समस्या ने दैनिक जीवन को कठिन बना दिया है; चलते‑फिरते सांस लेना अब कई लोगों के लिए चुनौती बन गया है।
एक प्रमुख PM2.5, हवा में मौजूद दो माइक्रोमीटर से छोटे कणों को कहते हैं है, जो गहरी फेफड़े तक पहुँचकर विभिन्न रोगों का कारण बनते हैं। इसी तरह स्मॉग, धुआँ, धूल और अन्य प्रदूषकों का मिश्रण है भी शहरी क्षेत्रों में अक्सर दिखता है, खासकर ठंडी सुबह में। जब हवा में इन घटकों की मात्रा बढ़ती है, तो वायुमंडल प्रदूषण, समग्र हवा में मौजूद हानिकारक पदार्थों का समूह है के स्तर भी बढ़ जाता है, जिससे स्कूल, ऑफिस और घरों में रहने वाले लोगों को सांस की तकलीफ़, सिर दर्द और आँखों में जलन जैसी समस्याएँ झेलनी पड़ती हैं।
अब बात करते हैं कि इस समस्या से कैसे निपटा जाए। सबसे पहले, घर के अंदर वायुप्रदूषण रोधी फर्नीचर, जैसे एयर प्यूरीफायर और पौधे का उपयोग किया जा सकता है। ये उपकरण बड़े कणों को पकड़ते हैं और हवा को स्वच्छ बनाते हैं। दूसरा, बाहर निकलते समय मास्क, खासकर N95 या एफपी2 मानक वाले मास्क पहनना फेफड़े को बचाने में मदद करता है। तीसरा, शहरों में ट्रैफ़िक को कम करने के लिये सार्वजनिक परिवहन या साइक्लिंग को अपनाएँ; यह न केवल धुएँ को घटाता है बल्कि सडकों की भी देखभाल करता है। अंत में, स्थानीय निकायों को हवा की गुणवत्ता मापने वाले सेंसर स्थापित करने और रीयल‑टाइम डेटा सार्वजनिक करने के लिए दबाव बनाना चाहिए, ताकि हर कोई समस्या की गंभीरता समझ सके और सही कदम उठा सके।
इन उपायों को अपनाकर हम न सिर्फ अपनी खुद की सेहत बचा सकते हैं, बल्कि बच्चों, बुढ़ापे और रोग‑प्रवण लोगों की ज़िंदगी भी आसान बना सकते हैं। एक साफ़ हवा वाला माहौल बेहतर मनोबल, बढ़ी हुई उत्पादकता और कम स्वास्थ्य खर्च का कारण बनता है। यदि आप जानना चाहते हैं कैसे विभिन्न शहरों में वर्तमान वायु गुणवत्ता आँकड़े बदल रहे हैं, तो नीचे के लेखों में नवीनतम रिपोर्ट, विशेषज्ञों के सुझाव और स्थानीय पहलों की जानकारी मिलेंगी—एक साथ पढ़िए और अपनी जीवनशैली में छोटे‑छोटे बदलाव लाएं।
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