जब हम मंगल दोष निवारण, ज्योतिष में मंगल ग्रह की प्रतिकूल स्थितियों को सुधारने की प्रक्रिया. Also known as मंगल शांति की बात करते हैं, तो सवाल अक्सर सिर्फ कारण नहीं, बल्कि समाधान तक पहुँचने का तरीका भी पूछते हैं। कई लोग मानते हैं कि यह दोष स्वास्थ्य, करियर और रिश्तों को प्रभावित करता है, इसलिए सही समय पर उपाय करना जरूरी हो जाता है। इस लेख में हम शास्त्रीय परिभाषा, प्रमुख उपचार, और दैनिक प्रैक्टिस को सरल भाषा में समझेंगे, ताकि आप आगे बढ़ सकें।
पहला सहायक बिंदु है ग्रह शास्त्र, ज्योतिषीय ग्रंथ जो ग्रहों की गति और प्रभावों का अध्ययन करता है। यह शास्त्र बताता है कि मंगल की स्थिति जन्म कुंडली में कहाँ है और किस प्रकार सुसंगत या प्रतिकूल हो सकती है। ग्रह शास्त्र में कहा गया है कि मंगल की असंतुलित ऊर्जा रक्ताल्पता, आँधियों या आक्रामक व्यवहार को बढ़ा सकती है। इस कारण हम अक्सर कहते हैं, "मंगल दोष निवारण में ग्रह शास्त्र का विश्लेषण आवश्यक है" – यह पहला subject‑predicate‑object संबंध है जो हमारी समझ को आधार देता है।
दूसरा मुख्य संबंध है वैदिक ज्योतिष, पारम्परिक भारतीय ज्योतिष विज्ञान जो नक्षत्र, रासियों और ग्रहों के पहलुओं को मिलाकर भविष्यवाणी करता है। वैदिक ज्योतिष में मंगल का आध्यात्मिक पहलू भी शामिल है; यह बताता है कि मंगल द्वारा उत्पन्न उर्जा कब बुनियादी आत्मविश्वास को बढ़ावा देती है और कब असुरक्षा की ओर ले जाती है। इस शास्त्र के अनुसार, "वैदिक ज्योतिष में मंगल की स्थिति स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करती है" – यह दूसरा सेमांटिक ट्रिपल है, जो हमारे पहले वाले बिंदु को सुदृढ़ करता है।
तीसरा कड़ी है योग, शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अभ्यासों का समग्र प्रणाली। योग के कुछ आसन जैसे वीरभद्रासन, उष्ट्रासन और भुजंगासन विशेष रूप से मंगल की तीव्र ऊर्जा को स्थिर करने में मदद करते हैं। यहाँ एक स्पष्ट संबंध है: "योग के आसन मंगल की ऊर्जा को संतुलित करते हैं" – यह तीसरा सेमांटिक ट्रिपल है। नियमित अभ्यास न केवल शारीरिक लचीलापन बढ़ाता है, बल्कि मन को शांत करके प्रतिकूल ग्रहों के प्रभाव को कम करता है।
योग के अलावा प्राणायाम जैसे बंतरब्रह्मा और अनुलोम‑विलोम भी मंगल के कड़वे स्वर को सुगंधित बनाते हैं। इन तकनीकों को सुबह के समय, विशेषकर मंगलवार के पहले भाग में करने से अधिक लाभ मिलता है, क्योंकि उस समय ग्रह की उर्जा सबसे तीव्र होती है।
चौथे चरण में हम मंगल शांति पूजा और उसके सहायक साधनों की बात करेंगे। यहाँ मुख्य दो सहायक हैं: मंगल रत्न (लाल माणिक) और लाल ब्रेसलेट (रक्ताच). मंगल रत्न को शुक्रवार को शनि के साथ धारण करने से लाभकारी माना जाता है, जबकि लाल ब्रेसलेट को सोमवार की शाम को जल में स्नान करके पहनना शुभ होता है। ये वस्तुएँ शारीरिक एवं आध्यात्मिक दोनो स्तर पर ऊर्जा का संतुलन बनाती हैं।
मंत्रों की बात करें तो "ॐ क्रीं क्रीं क्रीं मंगलाय नमः" को दोपहर के बाद तीन बार जपना प्रभावी माना जाता है। यह मंत्र मंगल की अस्थिर उर्जा को शांति के ध्वनि में बदल देता है, जिससे तनाव कम होता है और स्पष्ट सोच को बढ़ावा मिलता है। इस प्रकार मंत्र‑रत्न का संगम भी "मंगल दोष निवारण में आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाता है"—चौथा संबंध स्थापित करता है।
अब बात करते हैं वास्तविक जीवन में क्या‑क्या करना चाहिए। पहला कदम है जन्म कुंडली का वैध ज्योतिषी से मिलकर विश्लेषण कराना। यदि मंगल की दशा अनुकूल नहीं है, तो आगे बताए गये उपायों को क्रमिक रूप से अपनाएँ। दूसरा, रोज़ सुबह 6 बजे या शाम 6 बजे हल्का योग सत्र और प्राणायाम करें। तीसरा, मंगल शांति पूजा में प्रयोग किये गये मंत्र को हर दिन दो बार जपें। चौथा, रत्न या ब्रेसलेट को सही समय पर धारण करें और उसकी शुद्धि नियमित रूप से करें। इन छोटे‑छोटे कदमों से न सिर्फ ग्रह की नकारात्मकता घटती है, बल्कि मन की शांति भी मिलती है।
इन तरीकों को अपनाने के बाद आप खुद देखेंगे कि स्वास्थ्य में सुधार, काम में सफलता और रिश्तों में सामंजस्य बढ़ता है। अगला चरण है इन उपायों के विस्तृत प्रभाव और व्यक्तिगत अनुभवों को समझना, जिसका विवरण नीचे के लेखों में मिलेगा। अब आप तैयार हैं, इस ज्ञान को अपने दैनिक जीवन में लागू करने के लिए और नीचे के लेखों से और गहरी जानकारी हासिल करने के लिए।
31 मार्च 2025 को चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन को माँ छत्रगांठा को समर्पित किया जाता है। इस दिन के लिए विशेष मुहूर्त, रंग, पूजा सामग्री और मंत्र बताए गए हैं। अर्जुन‑राशि वालों के लिए मंगल‑दोष निवारण के उपाय भी इस लेख में शामिल हैं। सही तैयारी से मन की शांति, साहस और रिश्तों में समरसता आती है।