जीडीपी वृद्धि: भारत की आर्थिक गति को समझिए

क्या आपने कभी सोचा है कि देश की समृद्धि कैसे मापी जाती है? यही काम जीडीपी करता है। आसान शब्दों में कहें तो, यह एक साल में निर्मित सभी सामान और सेवाओं का कुल मूल्य है। जब जीडीपी बढ़ती है, तो आम तौर पर लोगों की खरीद शक्ति भी सुधरती है, नौकरी के अवसर मिलते हैं और सरकार को करों से ज्यादा पैसा मिलता है। चलिए देखते हैं इस आंकड़े के पीछे क्या कारण होते हैं और हालिया रिपोर्टें हमें क्या बताती हैं।

जीडीपी क्या होता है?

जीडीपी का पूरा नाम "ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट" है। यह तीन मुख्य हिस्सों से बनता है – उपभोग, निवेश और सरकारी खर्च, साथ ही निर्यात‑आयात का अंतर (शुद्ध निर्यात)। अगर आप बाजार में एक कप चाय खरीदते हैं तो वह उपभोग में गिना जाता है; नई फैक्ट्री बनाने की लागत निवेश कहलाती है; सड़क, अस्पताल बनाना सरकार का खर्च है। जब इन सबका कुल मिलाकर मूल्य साल दर साल बढ़ता है, तो इसे जीडीपी वृद्धि कहते हैं।

2023‑2024 में भारत की जीडीपी वृद्धि के मुख्य आंकड़े

अंतिम सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, 2023‑24 वित्तीय वर्ष में भारत का जीडीपी लगभग 7.6 % बढ़ा। यह गति पिछले साल (6.9 %) से थोड़ी तेज़ थी। प्रमुख कारणों में निजी उपभोग की स्थिरता, सेवाओं का विस्तार और निर्यात में सुधार शामिल है। खासकर आईटी‑सेवाएँ और फार्मास्युटिकल्स ने वैश्विक बाजार में अपनी पकड़ मजबूत की, जिससे शुद्ध निर्यात में सकारात्मक योगदान मिला।

दूसरी ओर, कृषि सेक्टर की वृद्धि धीमी रही क्योंकि मौसम की अनिश्चितता और कीमतों का उतार‑चढ़ाव रहा। लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में डिजिटल भुगतान और छोटे व्यवसायों के विस्तार ने इस गिरावट को कुछ हद तक कवर किया। कुल मिलाकर, शहरों में खर्च बढ़ा जबकि गांवों में आय पर थोड़ा दबाव बना रहा।

इन आँकड़ों से पता चलता है कि सेवा‑सेक्टर्स अब भारत की आर्थिक धुरी बन चुके हैं। यदि आप निवेश करने का सोच रहे हैं, तो टेक और हेल्थकेयर स्टार्टअप्स पर नज़र रखें—वे ही आगे की वृद्धि के मुख्य चालक लगते हैं।

भविष्य में क्या उम्मीद रखी जा सकती है? सरकार ने "अटल अर्थव्यवस्था 2030" योजना जारी की है जिसमें बुनियादी ढाँचे, हरित ऊर्जा और कौशल विकास पर भारी निवेश का वादा किया गया है। अगर ये योजनाएँ सही तरह से लागू हों तो अगले पाँच साल में जीडीपी वृद्धि 8 % तक पहुँच सकती है। लेकिन इसके लिए रोजगार सृजन, शिक्षा सुधार और पर्यावरणीय चुनौतियों को संतुलन से संभालना जरूरी होगा।

समझने की बात यह भी है कि सिर्फ प्रतिशत ही नहीं, बल्कि वास्तविक आय (per capita GDP) भी देखनी चाहिए। जब जनसंख्या बढ़ती है, तो उच्च वृद्धि दर का मतलब हमेशा बेहतर जीवन स्तर नहीं होता। इसलिए नीति निर्माता अक्सर दोनों संकेतकों को साथ में देखते हैं।

अंत में, यदि आप आर्थिक खबरों के नियमित पाठक हैं, तो जीडीपी डेटा पर नजर रखना आपके लिए फायदेमंद रहेगा। यह आपको समझाने में मदद करेगा कि कौन से सेक्टर उछाल ले रहे हैं और किसे समर्थन चाहिए। इससे न केवल व्यक्तिगत वित्तीय निर्णय आसान होंगे, बल्कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की दिशा भी स्पष्ट होगी।

Shubhi Bajoria 30 नवंबर 2024

भारत की जीडीपी वृद्धि की दर घटी: दो वर्षों में सबसे कम दर्ज

भारत की जीडीपी वृद्धि दर वित्तीय वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही में 5.4% पर आ गई, जो पिछले दो वर्षों में सबसे कम है। निर्मिती और निजी खपत में कमजोरी के कारण यह गिरावट आई है, जिससे यह दर विश्लेषकों के अनुमानित 6.5% से कम है। अर्थशास्त्रियों ने साल के दौरान 7% वृद्धि के लक्ष्य पर चिंता व्यक्त की है।