नेपाल की राजधानी काठमांडू के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एक बड़े विमान हादसे में सौर्य एयरलाइन्स का 21 साल पुराना बॉम्बार्डियर CRJ200 जेट क्रैश हो गया। यह विमान पोखरा के लिए रवाना हुआ था, जहां इसे नियमित रखरखाव और तकनीकी निरीक्षण के लिए ले जाया जा रहा था। हादसे के समय विमान में 19 लोग सवार थे, जिनमें से 13 की मौके पर ही मौत हो गई। यह जानकारी पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के प्रवक्ता, जशोदा रेग्मी ने दी।
इस विमान का निर्माण 2003 में हुआ था और इसका पंजीकरण संख्या 9N-AME और सीरियल नंबर 7772 था। बॉम्बार्डियर CRJ200 एक प्रसिद्ध विमान मॉडल है, लेकिन इसके साथ जुड़े कई हादसे भी इसके खराब सुरक्षा रिकॉर्ड को दर्शाते हैं। इस विशेष विमान को सौर्य एयरलाइन्स द्वारा चालित किया जा रहा था और यह पहले भी कुछ हादसों का शिकार रह चुका है। हालांकि, उन हादसों का विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं है।
विमान में सौर्य एयरलाइन्स का स्टाफ ही सवार था, जिसमें कुल 19 लोग शामिल थे। हादसे में 13 लोगों की मौत हो गई, जबकि अन्य घायल हुए हैं। विमान के क्रू में प्रशिक्षित पायलट और अन्य तकनीकी कर्मचारी शामिल थे, जो इस विमान को पोखरा ले जा रहे थे। इस हादसे की खबर ने पूरे देश में शोक का माहौल पैदा कर दिया है।
वंशानुगत हादसों की कहानी के साथ, यह बॉम्बार्डियर CRJ200 मॉडल पहले भी कई बार सुर्खियों में रहा है। हादसे की वजह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाई है, लेकिन प्रारंभिक जांच में विमान के तकनीकी दोष या मौसम की खराबी को संभावित कारण माना जा रहा है। काठमांडू का त्रिभुवन हवाई अड्डा पहले भी अपनी चुनौतीपूर्ण लैंडिंग और टेक-ऑफ स्थितियों के कारण पहचाना जाता है।
नेपाल ऐतिहासिक रूप से हवाई दुर्घटनाओं के मामले में कमजोर सुरक्षा रिकॉर्ड रखा है। विशेष रूप से ट्रिकी हवाओं, पर्वतीय इलाकों और पुराने विमानों के कारण यहां विमान चलाने में काफी जोखिम होता है। इसमें कई चर्चित हादसे शामिल हैं, जिनमें यात्रियों की जानें गई हैं और बड़ी वित्तीय क्षति हुई है।
नेपाल सरकार और हवाई अड्डा प्रबंधन के सामने यह हादसा एक बड़ी चुनौती बनकर खड़ा हुआ है। विमानन नियमों में सुधार, तकनीकी जांच और प्रशिक्षण, और नए विमानों को सेवा में लाना भविष्य की अनिवार्यताएं बन गई हैं। सुरक्षा मानकों को और सख्त करने की आवश्यकता को भी जोर दिया जा रहा है।
यह हादसा न केवल सौर्य एयरलाइन्स बल्कि नेपाल की विमानन सुरक्षा को एक बार फिर सवालों के घेरे में खड़ा कर चुका है। अब देखना यह है कि भविष्य में इस तरह की दुर्घटनाओं को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं और कितनी तेजी से इन्हें लागू किया जाता है।