हर साल जब ठंडी हवा धीरे‑धीरे हटती है, सरसों के पीले खेत दिखने लगते हैं और लोग बाहर निकलते हैं, तो समझिए बसंत पंचमी आ गई। यह त्यौहार भारत में वसन्त ऋतु का पहला बड़ा उत्सव माना जाता है। एक ही दिन सूर्य देवता को पूजा जाता है, साथ‑साथ माँ सरस्वती की भी आराधना होती है।
बहुत से घरों में इस दिन सुबह जल्दी उठकर गीते पढ़े जाते हैं और शुद्ध सफेद कपड़े पहने होते हैं। माँ सरस्वती को पीले फूल, क़त्था (साबूदाना) का खीर या पान के साथ चावल की थाली अर्पित की जाती है। कहा जाता है कि पीला रंग ज्ञान और शुद्धता दर्शाता है, इसलिए इस दिन लोग अपने घर को भी पीले कपड़े, बैंगनी फूल और सजावट से भर देते हैं।
सरसों का तेल लेकर तिल के लड्डू बनाना या खीर पकाना भी आम रिवाज़ है। साथ ही कई जगह पर पतंगबाज़ी का आयोजन होता है – आकाश में रंग‑बिरंगी पतंगें उड़ाते देखना बच्चों और बड़ों दोनों को खुशी देता है। कुछ गाँवों में लोग नदी किनारे ‘कन्या पूजन’ करते हैं, जहाँ माँ सरस्वती की प्रतिमा या तस्वीर रखकर गीत गाए जाते हैं।
आजकल शहरों में बसंत पंचमी को संगीत महोत्सव, नृत्य प्रदर्शन और फूड स्टॉल के साथ मनाया जाता है। अगर आप भी इस दिन बाहर जाना चाहते हैं तो कुछ बातों का खयाल रखें: पतंग उड़ाते समय सुरक्षित दूरी बनाएँ, तेज़ हवाओं से बचें और बच्चों की निगरानी हमेशा रखिए।
अगर घर में ही उत्सव मनाना पसंद है तो सरल व्यंजनों पर ध्यान दें – कचरी के साथ मक्का का शोरबा या पनीर‑पकौड़ा बहुत लोकप्रिय हैं। पीले रंग के कपड़े पहनना न भूलें, इससे आपके फोटो भी इंस्टाग्राम पर चमकेंगे।धार्मिक रिवाज़ों में अगर आप व्रत रखना चाहते हैं तो हल्दी, काजू और किशमिश से बना ‘त्रिकाल’ लड्डू बनाकर माँ सरस्वती को अर्पित कर सकते हैं। यह ऊर्जा देता है और मन को शांति मिलती है।
बसंत पंचमी के दिन कई मंदिरों में विशेष पूजा होती है, जहाँ आप भाग ले सकते हैं। अगर आप किसी दूरस्थ जगह की यात्रा योजना बना रहे हैं तो पहले से समय‑सारिणी जांच लें, ताकि भीड़ से बचा जा सके और शांति से मन को सुकून मिल सके।
समापन में यह कहा जा सकता है कि बसंत पंचमी सिर्फ एक त्यौहार नहीं, बल्कि हमारे जीवन में नई शुरुआत का संकेत है। इस दिन आप अपने पुराने लक्ष्य दोबारा देख सकते हैं और नए सपने बना सकते हैं। तो क्यों न इस बार बसंत की ताज़ी हवा के साथ अपनी ज़िन्दगी में थोड़ा रंग भरें?
बसंत पंचमी का त्योहार, जो 2 फरवरी 2025 को मनाया जाएगा, वसंत ऋतु के आगमन का आयोजन करता है और देवी सरस्वती को समर्पित है। इस दिन को ज्ञान और कला की देवी सरस्वती का जन्मदिन माना जाता है। पुराणों के अनुसार, देवी सरस्वती का जन्म ब्रह्मा जी के कमंडल से हुआ था जिसने संसार को ध्वनि और वाणी दी। इस दिन का महत्व शिक्षा और सृजनात्मकता में वृद्धि के लिए देवी सरस्वती की पूजा करने में निहित है।