आर्थिक मंदी क्या है? समझें आसान शब्दों में

जब देश की उत्पादन घटती है, नौकरी कम होती है और लोग खर्च करने से बचते हैं, तो वही आर्थिक मंदी कहलाती है। ये सिर्फ आँकड़े नहीं होते, बल्कि रोज‑मर्रा की ज़िन्दगी पर असर डालते हैं – दुकानें बंद हो सकती हैं, वेतन में कटौती हो सकती है, और भविष्य की योजना बनाना मुश्किल हो जाता है.

आर्थिक मंदी क्यों आती है?

मुख्य कारणों में मांग‑साइड गिरावट, निवेश कम होना और विश्व बाजार का असर शामिल हैं. अगर लोग ख़रीदारी से बचते हैं तो कंपनियों की बिक्री घटती है, जिससे उत्पादन कम होता है. साथ ही, ब्याज दरें बढ़ने पर उधार लेना महंगा हो जाता है, इसलिए नई फंडिंग नहीं मिल पाती.

इसी के अलावा, सरकारी खर्च में कमी या टैक्स बढ़ना भी मंदी को तेज़ कर सकता है। जब सरकार कम पैसा खर्च करती है तो आर्थिक गति धीमी पड़ जाती है. ये सारे कारक आपस में जुड़कर एक चक्र बनाते हैं जिसे तोड़ना मुश्किल हो जाता है.

2025 के बजट और सर्वे में क्या संकेत हैं?

केंद्रीय बजट 2025 में नर्मला सीतारमण ने कर सुधार, इन्फ्रास्ट्रक्चर पर बड़ा खर्च और सामाजिक कल्याण योजनाओं की घोषणा की। लेकिन वेतन असमानता के मुद्दे अभी भी बड़े हैं. सर्वे बताता है कि कई बड़ी कंपनियों का मुनाफा बढ़ रहा है जबकि आम कर्मचारियों का वेतन स्थिर या घट रहा है.

ऐसे में अगर आप अपने खर्च को संभालना चाहते हैं तो बचत और निवेश पर ध्यान देना जरूरी है। छोटी‑छोटी लागत कम करें, ए emergency fund बनाएं और ऐसे सस्ते म्यूचुअल फंड या सावधि जमा चुनें जो जोखिम कम रखें.

साथ ही, नई नौकरी या अतिरिक्त आय के रास्ते खोजें – फ्रीलांसिंग, ऑनलाइन ट्यूशन या छोटे‑बड़े व्यापार. सरकार की योजनाओं में अगर कोई स्कीम आपके लिए उपयुक्त लगती है तो उसका लाभ उठाएँ, जैसे प्रधानमंत्री रोजगार योजना या कौशल विकास कोर्स.

अंत में याद रखें, आर्थिक मंदी अस्थायी होती है। सही कदम और समझदारी भरी वित्तीय योजना से आप इस दौर को आसानी से पार कर सकते हैं. अगर अभी भी संदेह है तो एक वित्तीय सलाहकार से मिलें – छोटे‑छोटे सवालों के जवाब भी आपके डर को कम कर देंगे.

Shubhi Bajoria 30 नवंबर 2024

भारत की जीडीपी वृद्धि की दर घटी: दो वर्षों में सबसे कम दर्ज

भारत की जीडीपी वृद्धि दर वित्तीय वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही में 5.4% पर आ गई, जो पिछले दो वर्षों में सबसे कम है। निर्मिती और निजी खपत में कमजोरी के कारण यह गिरावट आई है, जिससे यह दर विश्लेषकों के अनुमानित 6.5% से कम है। अर्थशास्त्रियों ने साल के दौरान 7% वृद्धि के लक्ष्य पर चिंता व्यक्त की है।